गांव के बच्चों ने कहा वे वीर बिरसा मुंडा के बारे नहीं जानते हैं। उन्हें कभी किसी ने इस बारे नहीं बताया। वे उनके बारे जानना चाहते हैं। आज हम खूंटी स्थित साइल रकब ( डोंबारी बुरू) पहुंचे। इसी पहाड़ पर बिरसा मुंडा और उनके बिरसइतों ने अंग्रेजों के ख़िलाफ़ लड़ा था। लड़ते हुए कई लोग शहीद हुए थे। इस संघर्ष में स्त्रियां और बच्चे भी शामिल थे और उन्होंने भी अपनी शहादत दी। उनकी स्मृति में एक स्मारक पहाड़ पर खड़ा है। यह दूर से ही दिखता है।
वीर बिरसा मुंडा के जीवन और संघर्ष की कहानी सुनकर बच्चे भाव विह्वल हो गए। पूरे पहाड़ पर अलग अलग अकेले बैठकर उन्होंने उस कहानी में डूबने की कोशिश की। अपने लिए भी कोई शक्ति मांगते हुए अपना वक्त बिताया। उन्होंने घंटो जंगल से बात की, जी भर उन्हें निहारा और एकांत में उन्हें सुनने की कोशिश की। गांव की स्त्रियां दूसरे पहाड़ों पर गीत गाती हुई गुजर रहीं थीं। बच्चों ने कहा यह ऊर्जा से भरने वाली अद्भुत जगह है।
पहाड़ पर हमने साथ कुछ खाया, अपनी भावनाएं बांटी, सपने बांटे और भीतर ही भीतर कुछ नए संकल्प किए।
फिर बच्चे वीर बिरसा मुंडा की जन्मस्थली देखने उलिहातु गए। बच्चों ने पूरे गांव का दौरा किया। पत्थर से बने घरों को छू कर देखा और नोट्स बनाए। अब वे अपनी डायरी लिखेंगे। उन्होंने कहा ये उनके जीवन में अब तक का सबसे यादगार पल था। लौटते हुए वे बोले अब वे अपने माता पिता से वीर बिरसा मुंडा के बारे पूछेंगे और उनके नहीं जानने पर उन्हें बताएंगे।
जॉय केरकेट्टा ने पूरी यात्रा में बच्चों का ध्यान रखा। गांव की लड़कियों के इस दल का नाम हमने “बीहन” रखा है। बीहन अर्थात अच्छी फसल के लिए बचाए गए बीज। इन उम्मीदों के नए बीजों के साथ इस तरह की यात्रा का यह मेरा पहला अनुभव रहा।